जलगोन में 25 लाख की पुलिया पहली ही बारिश में क्षतिग्रस्त, किसानों की फसल बर्बाद
ग्रामीणों ने उठाए सवाल – मुआवजे और जांच की मांग तेज
बड़वानी। बड़वानी जिले की पानसेमल जनपद क्षेत्र के ग्राम जलगोन में करीब 25 लाख रुपए की लागत से बनी Culvert पुलिया पहली ही बारिश में टूट-फूट का शिकार हो गई। पुलिया के क्षतिग्रस्त होते ही ग्रामीणों का गुस्सा फूट पड़ा। उनका आरोप है कि निर्माण में लापरवाही बरती गई और पुलिया का डिज़ाइन ही गलत बनाया गया। तेज बारिश का पानी सीधे खेतों में घुस गया जिससे किसानों की मेहनत और फसल दोनों चौपट हो गईं।
🌧️ पहली बारिश में ही पुलिया क्यों टूटी?
ग्रामीणों का कहना है कि पुलिया का निर्माण जल्दबाजी और घटिया गुणवत्ता से किया गया था। पानी की निकासी की सही व्यवस्था नहीं की गई। नतीजा यह हुआ कि बारिश का पानी पुलिया से सही तरीके से निकलने के बजाय खेतों में भर गया।
गांव के कपलेश्वर पाटिल ने बताया कि गांव के कई किसानों की फसल बर्बाद हो गई। इनमें सुरेश विक्रम पाटिल, कपलेश्वर रंगराव पाटिल, दिलीप हंसराज पाटिल, वामन कोली, रविन्द्र युवराज माली, दशरथ नारायण पाटिल और ज्ञानू प्रजापत शामिल हैं। उनके खेतों में पानी घुस गया और खरीफ की फसल पूरी तरह चौपट हो गई।
🌾 किसानों का नुकसान – खेत से लेकर घर तक असर
किसानों ने बताया कि बारिश का पानी सिर्फ खेतों में नहीं रुका, बल्कि घरों तक पहुंच गया। रमेश भीमराव पाटिल ने कहा कि उनके घर में रखा खाद और पशुओं का चारा भीगकर खराब हो गया। खेतों में मिट्टी का कटाव हो गया जिससे जमीन की उपजाऊ क्षमता भी प्रभावित होगी।
गांव की महिलाओं ने पंचायत पर भी सवाल उठाए। उनका कहना था कि नालियों की सफाई नहीं की गई, इसी वजह से गांव की सड़कों पर पानी भर गया। इससे आम लोगों को भी काफी परेशानी उठानी पड़ी।
💰 25 लाख का खर्च, फिर भी नाकाम पुलिया
ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि पुलिया पर 25 लाख रुपए खर्च किए गए, लेकिन पहली ही बारिश में उसकी पोल खुल गई। लोगों का कहना है कि निर्माण में घटिया सामग्री का इस्तेमाल किया गया। यही कारण है कि पुलिया का स्ट्रक्चर टिक नहीं पाया और बारिश का दबाव झेल नहीं सका।
🏛 प्रशासन का क्या कहना है?
इस पूरे मामले पर सहायक सचिव रतिलाल बर्डे ने जानकारी दी। उन्होंने कहा कि यह पुलिया मुख्यमंत्री अधोसंरचना योजना के तहत बनाई जा रही थी। अब तक कुल 60 प्रतिशत राशि जारी की जा चुकी है। फिलहाल क्षति के कारणों और किसानों के नुकसान का आकलन जांच के बाद किया जाएगा।
हालांकि, ग्रामीणों का कहना है कि जब तक जांच होती है, तब तक किसानों को भारी नुकसान झेलना पड़ेगा।
🌊 गोमाई नदी उफान पर – मंदिर पर भी खतरा
इधर, पानसेमल क्षेत्र में लगातार हो रही तेज बारिश से गोमाई नदी उफान पर है। शनि मंदिर के पास पानी भर गया और मंदिर के पास बनी पुलिया पर रपटे के ऊपर से पानी बहने की स्थिति बन गई। इससे आसपास के गांवों में बाढ़ जैसे हालात बन गए हैं।
📌 ग्रामीणों की मुख्य मांगें
- किसानों की बर्बाद हुई फसलों का तत्काल मुआवजा दिया जाए।
- पुलिया निर्माण की स्वतंत्र जांच हो और जिम्मेदार ठेकेदार व अधिकारियों पर कार्रवाई हो।
- नालियों की सफाई और गांव में पानी निकासी की व्यवस्था की जाए।
- खेतों में हुए कटाव और क्षति का मुआवजा अलग से मिले।
🚜 किसानों की नाराजगी क्यों जायज़ है?
ग्रामीणों का कहना है कि पुलिया का निर्माण जनता की सुविधा और खेतों की सुरक्षा के लिए किया गया था। लेकिन अगर वह पहली बारिश में ही खराब हो गई तो यह सीधा भ्रष्टाचार और लापरवाही का नतीजा है।
किसानों की मेहनत से उगाई गई फसल कुछ ही घंटों में बर्बाद हो गई। जिन परिवारों की आजीविका खेती पर निर्भर है, उनके सामने बड़ा संकट खड़ा हो गया है।
🔎 सवालों के घेरे में पंचायत और ठेकेदार
गांव के लोग पंचायत और ठेकेदार दोनों से नाराज हैं। उनका कहना है कि न तो पंचायत ने समय रहते नालियों की सफाई करवाई और न ही निर्माण की गुणवत्ता पर ध्यान दिया। लोग पूछ रहे हैं कि अगर पुलिया पर 25 लाख खर्च किए गए, तो आखिर वो पैसा कहां गया?
🌐 यह मुद्दा सिर्फ जलगोन का नहीं
विशेषज्ञों का कहना है कि ग्रामीण क्षेत्रों में इस तरह की समस्याएं आम हैं। कई बार पुलिया और सड़कों के निर्माण में गुणवत्ता से समझौता किया जाता है। नतीजा यह होता है कि थोड़ी सी बारिश में ही करोड़ों का नुकसान हो जाता है।
जलगोन का मामला सामने आने के बाद अब पानसेमल जनपद क्षेत्र के दूसरे गांवों में भी लोगों ने अपने-अपने इलाके के निर्माण कार्यों पर सवाल उठाना शुरू कर दिया है।
🙏 ग्रामीणों की अपील
ग्रामीणों ने जिला प्रशासन और सरकार से अपील की है कि किसानों को हुए नुकसान का तुरंत आकलन कर मुआवजा दिया जाए। साथ ही भ्रष्टाचार और लापरवाही करने वालों पर सख्त कार्रवाई हो।
निष्कर्ष
जलगोन की पुलिया का टूटना सिर्फ एक निर्माण की नाकामी नहीं, बल्कि किसानों की मेहनत और भविष्य पर पड़ा गहरा आघात है। अगर जल्द ही मुआवजे और जांच की प्रक्रिया शुरू नहीं हुई, तो ग्रामीणों का गुस्सा और बढ़ सकता है।